BREAKING NEWS
latest

👇👇👇👇👇





BGMI WHITE BODY CONFIG FILE


BGMI LESS RECOIL CONFIG FILE



























sindhu ghati sabhyata | सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार



 1826 में चार्ल्स मैसन ने हड़प्पा के टीलों पर प्रकाश डाला। 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा की खुदाई की गई। 1922 में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो की खुदाई की गई।


1924 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने इस सभ्यता का नामकरण सिन्धु घाटी की सभ्यता किया। 1947 के बाद इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाने लगा।


वर्तमान में सरस्वती सभ्यता का सिंधु-सरस्वती-सभ्यता नामकरण का मत भी प्रस्तुत किया जा रहा है।


तिथि-निर्धारणः


मार्टिमर ह्वीलर के अनुसार 2500 बी.सी. - 1500 बी.सी. 

रेडियो कार्बन पद्धति के अनुसार 2300-1740 बी.सी.


सर जॉन मार्शल इसे 3000 बी.सी. के पूर्व की मानते है।



मूल निवासी:


सभ्यता के मूल निवासियों के बारे में विभिन्न प्रकार के मत प्रचलित है। रंगनाथ राव इसके निर्माताओं को बहुजातीय मानते है। सर मार्टिमर ह्वीलर, जॉन मार्शल के अनुसार इस सभ्यता के जनक द्रविड़ जाति के लोग थे। डॉ. पुसालकर एवं विमलचन्द्र पाण्डे आर्यों को इस सभ्यता के जनक होने का श्रेय देते है। गार्डन चाइल्ड के अनुसार सुमेलिया के निवासियों ने सिंधु सभ्यता की स्थापना में अपनी भूमिका का निर्वहन किया । वस्तुतः अधिकांश विद्वान द्रविड़ों को ही इस सभ्यता का निर्माता स्वीकार करते हैं। सभ्यता में चार मानव प्रजातियों के लोग थे—1. प्रोटो ऑस्ट्रेलायड, 2. भूमध्यसागरीय, 3. मुंगोलायड, 4. नेग्रीटो। इनमें सर्वाधिक संख्या भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोगों की थी।


सिधु घाटी सभ्यता का विस्तार:


सिंधु सभ्यता का भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में रहा। भारत में पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र |


सिन्धु घाटी सभ्यता 12.99.600 वर्ग किमी. में विस्तृत थी। 

 सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेण्डोर (बलूचिस्तान, दाश्त नदी) । 

 सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर (मेरठ-हिण्डन नदी ) पर |


सर्वाधिक उत्तरी पुरास्थल माँडा (जम्मू-चिनाब नदी) । सर्वाधिक दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद (अहमदनगर-प्रवरा नदी) ।


सिंधु घाटी सभ्यता मे नगर-


सिन्धु सभ्यता को नगरीय सभ्यता कहा जाता है, क्योंकि यहाँ के नगरों का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया गया था। सड़कें लम्बी चौड़ी तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नगर आधुनिक व्यावसायिक शैली पर निर्मित थे, प्रत्येक गली में कुएँ तथा भवनों में स्नानागार थे। नगर का प्रत्येक भाग लम्बाई एवं चौड़ाई में गलियों द्वारा मुहल्लों में विभाजित था। सड़कों के किनारे कूड़ा डालने हेतु मिट्टी निर्मित पात्र रखे रहते थे। गंदे पानही के निकास हेतु नगर में छोटी, बड़ी तथा गहरी नालियों को जाल-सा बिछा हुआ था। ईंट, चूना तथा खड़िया मिट्टी से निर्मित इन नालियों को बड़ी-बड़ी ईंटों तथा पत्थरों से ढ़का जाता है। 


मोहनजोदड़ों से 30 फुट चौड़ा राजमार्ग मिला है। नालियों के निर्माण हेतु पकी हुई ईंटों का प्रयोग किया गया था । पकी ईंटों का प्रयोग केवल यही अन्य सभ्यताओं में नहीं।


सिंधु घाटी सभ्यता मे भवन निर्माण:


मकान 4 कमरों से 30 कमरों के मिलते हैं। ●सड़कों तथा गलियों के दोनों ओर भवनों का निर्माण एक पंक्ति में कच्ची तथा पक्की ईंटों के द्वारा किया जाता था। भवन में रसोईघर, कुएँ, स्नानघर, आँगन तथा शौचालयों का निर्माण किया जाता था। भवन छोटे-बड़े, एक मंजिले तथा दो मंजिले होते थे। भवनों के द्वार राजमार्गों की ओर न खुलकर गली में पीछे की ओर खुलते थे।


विशेष बिन्दुः


हड़प्पा से अन्नागार के साक्ष्य, श्रमिक आवास, कब्रिस्तान R-37, काँगे का एक्का, कांस्य दर्पण, एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, सिन्धु सभ्यता की अभिलेखयुक्त मुहरें सर्वाधिक हड़प्पा से ही प्राप्त हुई है। 


मोहनजोदड़ों से वृहत्तस्नानागार, अन्नागार, पुरोहितावास, महाविद्यालय के साक्ष्य, सभागार (एसेम्बली हॉल) मिले हैं। काँसे की नग्न स्त्री की मूर्ति, पशुपति शिव के साक्ष्य, हाथी का कपालखंड आदि भी मिले हैं।


« PREV
NEXT »

कोई टिप्पणी नहीं