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महाराणा प्रताप का संपूर्ण इतिहास

महाराणा प्रताप सिसोदिया वंश का महान राजा था। महाराणा प्रताप ने मेवाड़ में कुल 25 वर्ष तक शासन किया। महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह व माता जैवन्ता बाई थी ।



इतिहास का एकमात्र राजा महाराणा प्रताप है, जिसका जन्म 1597 विक्रमी महाराणा प्रताप का जन्म बादल महल (कटारगढ) कुम्भलगढ़ दुर्ग में 9 संवत् व मृत्यु 1597 ई. में हुई।


मई 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, विक्रमी संवत् 1597) को हुआ। महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका (भीलों में छोटे बालक को कीका कहते है।) था। महाराणा प्रताप को कर्नल टॉड ने मेवाड़ केसरी कहा है। महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी का शेर भी कहा जाता है।


उदयसिंह ने अपनी रानी भटियाणी (धीर वाई) के प्रभाव में आकर जगमाल को उत्तराधिकारी बनाया।


अखैराज सोनगरा ने जगमाल को गद्दी से हटाकर महाराणा प्रताप को शासक बनाया इस अवसर पर पंडित कृष्णदास नामक ब्राह्मण ने 28 फरवरी, 1572 ई. को 32 वर्ष की आयु में महाराणा प्रताप की कमर में राजकीय तलवार बांधकर गोगुन्दा, उदयपुर में राजतिलक किया, लेकिन विधिवत रूप से राजतिलक राव चन्द्रसेन की मौजूदगी में कुंभलगढ के दुर्ग में हुआ।


कुछ विद्वानों के अनुसार महाराणा प्रताप ने मानसिंह का अपमान किया था। इसलिए मानसिंह ने प्रताप के विरूद्ध अकबर को युद्ध हेतु भड़काया जिसका परिणाम हल्दीघाटी था। लेकिन अमर काव्य वंशावली में मानसिंह और महाराणा प्रताप की मुलाकात को सौहार्दपूर्ण बताया है। अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध की व्यूह रचना मैग्जीन दुर्ग में ही रची थी।


हल्दीघाटी युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप जिस भूमि पर अपना नियंत्रण नहीं रख सका, वहाँ उसने स्वभूमिध्वंस की नीति (स्कॉर्चड् अर्थ पॉलिसी) को अपनाया।


18 जून 1576 ई. (गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 21 जून 1576 ई.) को हल्दीघाटी का युद्ध / रक्त तलाई का युद्ध हुआ। हल्दीघाटी का युद्ध मुगल सेनापति मिर्जा राजा मानसिंह व महाराणा प्रताप के बीच हुआ। हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के मिर्जा राजा मानसिंह ने किया ।


हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह का मुस्लिम सहयोगी सेनापति आसफ खां था। * मानसिंह ने मुगल सेना का नेतृत्व करते हुए मोलेला गांव (राजसमंद)


में पड़ाव डाला। महाराणा प्रताप ने युद्ध की योजना 'कुम्भलगढ़ दुर्ग' में बनाई तथा सेना ने लोहसिंह गांव (राजसमंद) में पड़ाव डाला।


महाराणा प्रताप का शस्त्रागार मायरा की गुफा, उदयपुर में था।


हल्दीघाटी युद्ध के समय महाराणा प्रताप ने अपना मुख्य नियंत्रण केन्द्र केलवाड़ा, राजसमंद को बनाया।


हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की हरावल सेना (सेना का अग्रिम भाग) का नेतृत्व एकमात्र मुस्लिम सेनापति हकीम खां सूरी पठान ने किया। 


 हकीम खां सूरी का मकबरा खमनौर (राजसमंद) में बना है।


हल्दीघाटी युद्ध को बनास का युद्ध तथा हाथियों का युद्ध भी कहा जाता है। 


कर्नल जेम्स टॉड ने 'हल्दीघाटी को मेवाड़ की थमपोली' कहा है। 


थर्मोपली नामक मूल युद्ध फारसी सेनानायक जयप व यूनानी वीर सेनानायक लियोनिडास के मध्य हुआ था। इसलिए कर्लग्न जम्प टॉड ने लिखा है कि 'मेवाड़ में ऐसा कोई स्थल नहीं जहाँ थर्मोपटी जैसी भूमि ना हो और लियोनिडास जैसा वीर नहीं है।'


हल्दीघाटी युद्ध को अबुल फजल ने खपनौर का युद्ध व बंदायूनी ने गोगुन्दा का युद्ध कहा है।


हल्दीघाटी युद्ध में प्रसिद्ध इतिहासकार बंदायूनी मौजूद था। 


हल्दीघाटी युद्ध का आँखों देखा वर्णन इतिहासकार बंदायूनी ने अपने ग्रंथ मुन्तखव-उत-तवारिख में किया है तथा युद्ध के बाद बदायुनी ने अपनी दाढ़ी को राजपुतों के खून से रंगा।


हल्दीघाटी युद्ध के शुरूआत में राजपूतों ने मुगल सेना को पीछे हटा दिया था लेकिन तीसरे खंड का सेनापति 'मिहत्तर खाँ' ने अकबर के आने की झूठी अफवाह फैला दी, जिससे मुगल सेना में वापिस जोश आ गया और इसी जोश मुगल सेना को विजय दिलाई। ने


महाराणा प्रताप की सेना में रामप्रसाद, खांडेराव चक्रवाप व लूणा हाथी थे। हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रिय हाथी का नाम रामप्रसाद था जिसे अकबर ने बाद में पीर प्रसाद नाम दिया था।


मुगलों की सेना में मर्दाना, गजमुखता, गजरात, रन-मंदार हाथी थे। 


हल्दीघाटी युद्ध में मिर्जा राजा मानसिंह का हाथी मूर्दाना था। अकबर 'हाथी का नाम 'हवाई' था।


झाला वीदा या झाला मन्ना ने महाराणा प्रताप का राज्य चिन्ह लेकर स्वयं लड़ना शुरू किया तथा हल्दीघाटी युद्ध में अपना बलिदान देकर प्रताप युद्ध के मैदान से निकाला। हल्दीघाटी युद्ध के बाद प्रताप की सेना कोल्यारी गांव (उदयपुर) रूकी व कोल्वारी गाँव के निकट ही कमलनाथ पर्वत के पास आवरगढ़ में अपनी अस्थायी राजधानी स्थापित की।


अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के विरुद्ध तीन बार शहबाज खां को चौथी बार अब्दुल रहीम खानेखाना को तथा अन्तिम पांचवी बार जगन्नाथ कच्छवाह को प्रताप के विरुद्ध आक्रमण हेतु भेजा। मेवाड़, में दिवेर (राजसमंद), देसुरी (राजसमंद), देवल (डूंगरपुर) व देबारी (उदयपुर) चार प्रमुख ठिकाने थे। सबसे महत्वपूर्ण ठिकाना दिवेर . ठिकाना था। जहाँ अकबर ने सुल्तान खां को मुखितयार नियुक्त किया था। महाराणा प्रताप ने अक्टूबर 1582 ई. में मुगलों का विरोध शुरू किया। दिवेर के युद्ध (1582 ई.) को महाराणा प्रताप की विजयों का श्री गणेश कहा जाता है। दिवेर युद्ध में सुल्तान खां मारा गया । दिवेर युद्ध में महाराणा प्रताप ने 'गुरिल्ला (छापामार) युद्ध पद्धति' का प्रयोग करते हुए विजय प्राप्त की ।


दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगलगढ़ (विभिन्न मुगल ठिकाने) पर आक्रमण किया और उन सभी 36 मुगलों की चौकियों को जीत लिया। जिसके परिणामस्वरूप मेवाड़ की 36 मुगल चौकियाँ मुगलों द्वारा बंद कर दी गई।


मैराथन का युद्ध फारसी सेनानायक हिप्पियस एवं एथेंस के सेनानायक मिल्टिएड्स के मध्य यूनान की भूमि पर हुआ था। इस युद्ध में एथेंस अपना सम्मान बचा पाया था। इसलिए कर्नल जेम्स टॉड ने 'दिवेर के युद्ध' को 'मेवाड़ का मैराथन' कहा हैं।


1584 ई. में अकबर ने महाराणा प्रताप के विरूद्ध जगन्नाथ कछवाहा को भेजकर अंतिम अभियान किया। लेकिन मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) जगन्नाथ कछवाहा मृत्यु हो जाती है। इसके बाद 1584 से 1597 ई. तक अंतिम 13 वर्षों में महाराणा प्रताप व अकबर के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ। इतिहासकार इसे अघोषित संधि कहते है।

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