वीर सावरकर पहला भारतीय क्रांतिकारी लेखक है जिसने 1857 के विप्लव को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम युद्ध बताया है उससे अपने ऐतिहासिक ग्रंथ को स्वतंत्रता सैनिको को समर्पित करते हुए लिख है कि, 'स्वधर्म तथा स्वदेश की स्वतंत्रता के लिए लड़ते-लड़ते मरण का वरण करने वाले वीरो, यह कृतज्ञ इतिहास तुम्हारी पावन स्मृति में ही समर्पित है।'
वीर सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक- “The Indian war of Indepen dence- 1857"
आर.सी. मजूमदार के अनुसार 1857 की क्रांति प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नहीं था बल्कि एक सैनिक विद्रोह था।
हरिनारायण सैनी ने आजादी का आन्दोलन और अलवर नामक पुस्तक लिखी थी।
'माझा प्रवास' विष्णुभट्ट गोडसे द्वारा लिखित पुस्तक है। अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक द ग्रेट रिवेलियन (The Great Rebel lion) में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि यह एक राष्ट्रीय विद्रोह था। वीर रसावतार सूर्यमल्ल मिश्रण में अपनी पुस्तक वीर सतसई में 1857 की क्रांति पर कुछ रचनाएं लिखी है।
हाड़ौती अंचल के सुप्रसिद्ध समकालिन कवि लेखक सूर्यमल्ल मिश्रण ने 1857 की क्रांति को कभी सिपाही विद्रोह या 'गदर' नहीं माना, उसने इसे स्वातंत्र्य संग्राम की ही संज्ञा दी थी और उसे समग्र देश के संघर्ष के संदर्भ में ही आँका था।
बांकीदास ने अपनी पुस्तक 'बाकीदास री ख्यात' में 1857 की क्रांति के बारे में लिखा है -- “आयो राज अंग्रेज रो मुलक र ऊपर" उक्ति प्रसिद्ध
“Rajasthan Role in the Struggle of 1857"- नाथूलाल खडगावत ।
27 जुलाई, 1857 ई. को डिजरायली ने ब्रिटिश लोकसभा में कहा था। कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत की परम्पराओ व रीति-रिवाजों के विरूद्ध अपनाई गई नीति के फलस्वरूप भारत में विद्रोह भड़क उठा था।
पं. जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक हिन्दुस्तान की कहानी (संक्षिप्त संस्करण) में लिखते है कि 1857 ई. के विप्लव ने तीव्र गति से व्यापक रूप ले लिया और वह हिन्दुस्तान की लड़ाई बन गई। उनका मत है कि मुख्यतः यह एक सामंतवादी विद्रोह था, जिसके नेता सामंत सरदार या उनके साथी थे, परन्तु विभिन्न कारणों से देश में अंग्रेज विरोधी भावना व्याप्त थी, अतः कुछ अंशो तक विप्लवकारियो को जन-समर्थन भी प्राप्त था । अन्ततः यह कहना उपयुक्त होगा कि 1857 का विप्लव यदि पूर्णतया राष्ट्रीय विद्रोह नहीं कहा जा सकता, तो इसे मात्र सिपाही गदर की संज्ञा देना भी उचित नहीं होगा।
मंशी जीवनलाल और मुईनद्दीन, दुर्गादास बंधोपाध्याय (बरेली) लारेन्स, ट्रेवेलियन, केय, मालेसन, टी.आर. होम्स के अनुसार 1857 की क्रांति एक 'सैनिक विद्रोह' था।
शशिभूषण चौधरी ने अपनी पुस्तक kTheores of the Indian Mutinyl में 1857 ई. के संघर्ष को स्वतंत्रता का संग्राम माना है।
शशि भूषण चौधरी ने 1957 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'Civil Rebellion in Indian Mutinies, 1857-1859' में 1857-58 ई. घटनाओं को सैनिक व असैनिक विद्रोही के सम्मिश्रण मे देखते है
एस. एन. सेन ने 1857 के विद्रोह का सरकारी इतिहासकार, सरकार ने इन्हें .1857 के विद्रोह पर अधिकृत इतिहास लिखने को कहा। इन्होंने सैनिक बगावत व 1857 का विद्रोह (Eighteen Fifty Seven) नामक पुस्तक में 1857 के सम्बन्ध में लिखा है कि यद्यपि इस विद्रोह को 'राष्ट्रीय संग्राम' नहीं कहा जा सकता, परन्तु इसे विद्रोह की संज्ञा देना भी गलत होगा, क्योंकि यह कहीं भी केवल सैनिकों तक सीमित नहीं रहा।
आर. सी. मजूमदार- इन्होंने अपनी पुस्तक 'The Sepoy Mutiny and the Rebellion of 1857' प्रकाशित की। उन्होंने इस पुस्तक में निष्कर्ष निकाला है कि 'यह तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न तो
प्रथमः, न ही राष्ट्रीय तथा न ही स्वतंत्रता संग्राम था......।" आर. सी. मजूमदार की एक अन्य पुस्तक का नाम 'British Paramoun tancy And The Indian Renaissance' है।
सर जेम्स आउट्रम और डब्ल्यू टेलर ने 1857 के विद्रोह को हिन्दू-मुस्लिम
षड़यंत्र का परिणाम कहा है।
बेंजामिन डिजरेली (ब्रिटिश प्रधानमंत्री) ने 1857 के विद्रोह को 'राष्ट्रीय विद्रोह का है।
सैय्यद अहमद खाँ ने अपनी पुस्तक 'An Essay on the Indian revolt (FAGI) में इसे सैनिक विद्रोह माना। टीआर होम्स ने 1857 की क्रांति को चरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध कहा है।
प्रिचार्ड ने अपनी पुस्तक 'द म्यूटिनी इन राजस्थान' में विचार व्यक्त किये है कि यदि अजमेर पर क्रांतिकारीयो (विप्लवकारियो) का अधिकार हो जाता तो राजस्थान के शासक उनके सहयोगी बन जाते। रेजीडेन्सी के संबंध में पन्निकर ने कहा है कि-'रेजीडेन्सी में होने वाली
फुस्स-फुसाहट राज्य के लिए गरज हो जाती थी।'
डॉ. ताराचन्द ने 1857 के विद्रोह को 'राष्ट्रीय विप्लव' कहा है। अंग्रेज इतिहासकारों ने इसे सिपाही विद्रोह, सामन्तवादी प्रतिक्रिया, हिन्दू मुस्लिम षड्यंत्र आदि की संज्ञा दी है।
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