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राजस्थान के क्षेत्र व जाति विशेष के मेले






जांगल प्रदेश का सबसे बड़ा मेला कपिलमुनि का मेला कोलायत (बीकानेर) में लगता है।

यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन कोलायत झील में किया गया स्नान गंगा स्नान की तरह पवित्र माना जाता है।

इस मेले के सरोवर में दीपदान की परम्परा प्रसिद्ध है। 
कोलायत में कपिल मुनि की तपोभूमि स्थित है।

जनश्रुति के अनुसार कपिल जी ने यहाँ पर सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया था।  हिन्दू-सिक्ख धर्म का सबसे बड़ा मेला कपिलमुनि का मेला कोलायत (बीकानेर) में लगता है।

मारवाड़ प्रदेश का सबसे बड़ा मेला रामदेवरा मेला (बाबा रामदेवजी का मेला) पोकरण (जैसलमेर) में लगता है। 

 यह मेला भाद्रशुक्ल द्वितीया से एकादशी तक लगता है।

यहाँ इस मन्दिर के पुजारी तंवर जाति के राजपूत होते हैं।

तीर्थयात्रियों को 'जातरू' कहा जाता है। रूणेचा या रामदेवरा पर लोकदेवता रामदेवजी का समाधि स्थल है।

रूणेचा या रामदेवरा पर रामदेवजी को प्रिय श्वेत तथा नीले घोडे चढ़ाये जाते हैं।

रामदेवरा से 12 किलोमीटर दूरी पर पंच पीपली नामक धार्मिक स्थल पर रामदेवजी ने पाँच पीरों को पर्चा दिया था।

साम्प्रदायिक सद्भाव का सबसे बड़ा मेला रामदेवरा मेला जैसलमेर में लगता है।

हिन्दु-जैन सद्भाव का सबसे बड़ा मेला ऋषभदेव जी का मेला धुलेव (उदयपुर) में लगता है।

यह मेला चैत्र कृष्ण अष्टमी- नवमी को लगता है।

धुलेव (उदयपुर) में जैन तीर्थकर ऋषभदेवजी की काले पत्थर की मूर्ति है।

यहाँ केसर बहुत अधिक चढ़ाई जाने के कारण इसे केसरियानाथजी भी कहते है।

यहाँ काले पत्थर की मूर्ति होने के कारण भील लोग इनको कालाजी भी कहते है।

ऋषभदेवजी जैनियों के प्रथम तीर्थकर है तथा 2.3वें तीर्थकर पार्श्वनाथ जी व 24वें तीर्थंकर महावीरजी है।

इस मेले में आदिवासी जाति इकट्ठी होती है।

बागड़ प्रदेश का सबसे बड़ा मेला बेणेश्वर का मेला नवाटापुरा (डूंगरपुर) में लगता है।

बैणेश्वर मेला माघ शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक भरता है।

बैणेश्वर नाम शिवलिंग पर आधारित है। यह शिवलिंग स्वयं उद्भुत माना गया है।

बैणेश्वर मेला आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला है।

वेणेश्वर के मेले को बागड़ प्रदेश का पुष्कर तथा आदिवासियों का कुंभ भी कहा जाता है।

बैणेश्वर मेला डूंगरपुर जिले में बैणेश्वर के नवाटापुरा नामक स्थान पर सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर शिवलिंग की पूजा हेतु लगता है।

आदिवासी जातियों में यह मेला मुख्यतः भील जनजाति है।

इस मेले में मुख्यतः डूंगरपुर, बांसवाड़ा जिले के लोग भाग लेते है। 

इस मेले को जनजातियों का लोक मेला के नाम से भी जाना जाता है।

वेणेश्वर नामक स्थान पर राजा बलि की यज्ञ स्थली है।

हाड़ौती प्रदेश का सबसे बड़ा मेला सीताबाड़ी का मेला शाहबाद (बारां)

यह मेला ज्येष्ठ माह की अमावस्या को लगता है।

सीताबाड़ी के बारे में किवदन्ती प्रचलित है कि यहाँ भगवान राम के सीता परित्याग के उपरान्त सीता ने अपना निर्वासन काल यहाँ वाल्मिकी आश्रम में व्यतीत किया था।

सीताबाड़ी लव-कुश की जन्म स्थली व राम सेना के समर की साक्षी है।

सीताबाड़ी का मेला सहरिया जनजाति का कुंभ मेला माना जाता है। 
सीताबाड़ी मेला हाड़ोती अंचल का सबसे बड़ा मेला है।

सीताबाड़ी में सात कुण्ड है।

जैनियों का सबसे बड़ा मेला महावीर जी का मेला (करौली) में लगता

यह मेला चैत्र शुक्ल 13 से वैशाख कृष्ण 2 तक लगता है।

श्रीमहावीरजी दिगम्बर जैन सम्प्रदाय का एक प्रमुख स्थान है।

यहाँ पर भगवान महावीरजी की लगभग 400 वर्ष पुरानी मूर्ति स्थित है।

इस मेले के अंत में रथ यात्रा का आयोजन होता है। श्रीमहावीरजी की लठ मार होली प्रसिद्ध है।

मत्स्य प्रदेश का सबसे बड़ा मेला भर्तृहरि का मेला अलवर में लगता है।

यह मेला भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को लगता है। यहाँ पर भर्तृहरि का समाधि स्थल स्थित है।

सिक्ख धर्म का सबसे बड़ा मेला साहवा का मेला साहवा (चूरू) में लगता है।

यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है।

साहवा गुरुद्वारे के साथ नानक देव एवं गुरुगोविन्द सिंह के आने एवं रहने की स्मृतियां जुड़ी हुई है।

मेरवाड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा मेला पुष्कर का मेला पुष्कर (अजमेर) में

यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है। पुष्कर मेले को राजस्थान का रंगीला मेला कहा जाता है।

विश्व का सबसे बड़ा पशु मेला पुष्कर, अजमेर में लगता है।

पुष्कर मेले में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक आते है। 
इस मेले में ऊँटों की सर्वाधिक बिक्री होती है।
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