BREAKING NEWS
latest

राजस्थान की प्रमुख भक्त महिलाए

 मीराबाई -


मीराबाई के बचपन का नाम 'पेमल' था।


● मौराबाई का जन्म 1498 में वैशाख शुक्ला तीज को 'कुड़की (पाली)' में हुआ।


● राठौड़ों के मेड़तिया शाखा के संस्थापक राव दूदा मीरा के दादा तथा रतन सिंह मीरा के पिता थे। 1516 ई. मोरा का विवाह चितौड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हो गया, किन्तु विवाह के 7 वर्ष बाद ही भोजराज की मृत्यु गई और मोरा विधवा हो गई।


● मीरा पति की मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गई।


● रैदास जी जब चितौड़ में आये थे, तब मीरा ने इनसे दीक्षा ली थी।


 ● मौरा चितौड़ को छोड़कर पहले मेड़ता फिर वृंदावन तत्पश्चात् द्वारका चली गई।


● मीरा की रचनाओं में 'टीकाराग', 'नरसी मेहता री हुंडी', 'रूक्मणी मंगल', 'गीत-गोविंद' आदि प्रमुख है।


 ● मीरा के निर्देशन में बजभाषा की रचना 'नरसी जी रो मायरो' है। इसके रचयिता रतना खाती है।


• मीरा को 'राजस्थान की राधा' के प्रतीक रूप में जाना जाता है।


• मीरा की उपासना 'माधुर्य भाव' की थी। • मीरा की 'पदावलियां' प्रसिद्ध है।


• मीरा अपने अंतिम समय में गुजरात के डाकोर स्थित रणछोड़ चली गई और वहीं अपने गिरधर गोपाल में विलीन में हो गई।


• मीरा की मृत्यु द्वारका में 1548 ई. (वि.स. 1604) को हुई।


करमेती बाई -


• ये खण्डेला के कुल पुरोहित शास्त्रज्ञ परशुराम कांथड़िया की पुत्री थी।


• खण्डेला ठाकुर ने इनकी स्मृति में ठाकुर बिहारी मंदिर निर्मित करवाया।


सहजो बाई :-


• संत चरणदास की कृष्ण भक्त शिष्या सहजोबाई द्वारा सहज प्रकाश, सोलह तिथि व शब्दवाणी रचनायें चरणदासी मत में विशेष स्थान रखती है।


दयाबाई :- 


• कोटाकासिम के डहरा गांव की दयाबाई संत चरणदास के चाचा केशव की पुत्री थी, जो राधाकृष्ण की भक्त थी।


• विवाह न करके चरणदास जी के सेवा में चली गई।


• बिदुर में मृत्यु (1855) में हुई तथा यहीं पर समाधि स्थल है।


गवरी बाई -


• डूंगरपुर महारावल शिवसिंह ने गवरी बाई के लिए 1829 में बालमुकुन्द मंदिर का निर्माण करवाया।


● इन्हें बागड़ की मीरा कहा जाता। है।


• फतेहपुर के कामयखानी नवाब फेदन खां की ताजबेगम कृष्णोपासिका थी। आचार्य बिट्ठलनाथ को गुरू माना तथा महावन में रहते हुए कृष्ण भक्ति में अनुरक्त समाधिस्थ हुई।


ज्ञानमती बाई -


• संत चरणदास के शिष्य आत्माराम इंकगी आश्रम शिष्या ज्ञानमती बाई का कर्मक्षेत्र जयपुर के गणगौर मोहल्ले में रहा। इसमें 50 वाणियां आत्माराम परंपरा के संतों के साथ संकलित है।


समान बाई चारण -


अलवर के माहुंद गांव की समानबाई पारण भक्तराम नाथ कवियत्री पुत्री थी। इन्होंने जीवन पर्यन्त आंखों पर पट्टी बांधे रखी ताकि किसी अन्य को न देख सके।


भक्त कवियत्री गंगा बाई -


• पुष्टमार्गीय गोस्वामी बिट्ठलनाथ की शिष्य गंगा बाई क्षत्राणी वैष्णव वार्ता से गंगा बेटी के नाम से प्रसिद्ध हुई।


फूली बाई -


• जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह की समकालीन फूलीबाई ने विवाह नहीं किया। इन्हें महाराज ने धर्म बहिन माना तथा जनाना की रानियों व अन्य स्त्रियों को धर्मोपदेश के लिए लेकर गया। ये मांझव गांव की थी।


भूरी बाई -


• उदयपुर में जन्मी करमा जिसने भगवा जगन्नाथ को हठ पूर्वक करवाया।


रानी रूपादे -


• इनके पिता वालाबदरा जो नाथ अनुयायी थे। ये वहां के राव भाटी की शिष्या थी। निर्गुण संत परम्परा की समर्थक रूपादे ढोंगी साधुओं के विरूद्ध थी।

« PREV
NEXT »

कोई टिप्पणी नहीं