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rav maldev | राव मालदेव का इतिहास

 • राव गांगा की मृत्यु के बाद मालदेव मारवाड़ का शासक बना। यह गांगा का सबसे बड़ा पुत्र था।



• राव मालदेव का जन्म 5 दिसम्बर, 1511 ई. को मणिक देवी की कोख से हुआ था, उसकी माता सिरोही के देवड़ा शासक जगमाल की पुत्री थी। 


• राव मालदेव का राज्याभिषेक का कार्य 21 मई, 1532 ई. को सोजत (पाली) में संपादित किया गया।


• राव मालदेव जिस समय जोधपुर का शासक बना उस समय उसके अधिकार


क्षेत्र में केवल जोधपुर व सोजत के ही परगने थे।


• मालदेव ताकतवर व्यक्ति था, इसलिए फारसी इतिहासकारों ने मालदेव को 'हिंदुस्तान का हशमत वाला शासक', वँदायूनी खाँ ने इसे 'भारत का महान पुरूषार्थी राजकुमार' तथा एक मुस्लिम इतिहासकार फरिस्ता ने 'हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली राजा' आदि नामों से पुकारा है।


● हिंदुओं का सहयोगी होने के कारण मालदेव को हिंदु बादशाह भी कहते है।


 • मारवाड़ चित्रशैली का स्वतंत्र उद्भव मालदेव के शासनकाल में हुआ।


 ● राव मालदेव का सर्वप्रथम अभियान 1531 ई. में भद्राजून (जो कि जोधपुर से लगभग 50 मील की दूरी पर स्थित था) पर हुआ। 

 इस हमले में वहाँ का शासक वीरा मारा गया और भद्राजून पर मालदेव का अधिकार हो गया।


 • नागौर के शासक दौलत खाँ व मालदेव के मध्य 1533 ई. में हीराबाड़ी (नागौर) नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें मालदेव की विजय हुई। रा मालदेव का नागौर पर अधिकार हो गया।


• मेड़ता के वीरमदेव को अजमेर पर आक्रमण करने के कारण व हीराबाड़ी के में दौलत खां लोदी से विजित दरियावजोश हाथी को मारवाड़ न पहुँचाने के कारण युद्ध झेलना पड़ा। मालदेव ने 1535 ई. में मेड़ता पर आक्रमण कर मेड़ता व अजमेर वीरमदेव से प्राप्त किया। • वीरमदेव भाग कर शेरशाह की शरण में चला गया और शेरशाह को मालदेव


के विरूद्ध भड़काया।


राव मालदेव ने 1538 ई. में सिवाणा (शासक-राणा डूंगरजी), जालौर


(सिकन्दर खान को कारवास में डाला) व साँचोर (चौहान शासक) पर


अधिकार किया। 1541 ई. में मालदेव ने अपने सेनापति जेता व कूपा के नेतृत्व में राव जैतसी के साथ पाहेवा/साहेवा का युद्ध फलौदी (जोधपुर) में हुआ।


* इव युद्ध में राव जैतसी मारा गया तथा मालदेव ने बीकानेर पर अधिकार कर लिया और बीकानेर का प्रबंध कूपा को दे दिया गया। ॐ राव जैतसी ने अपने मंत्री नागराज के माध्यम से शेरशाह सूरी से सहायता मांगी थी, जो उसे समय पर न मिल सकी।


● नैणसी री ख्यात तथा वीर विनोद के अनुसार मालदेव ने मेवाड़ के बनवीर


के विरूद्ध उदयसिंह को सहायता दी थी, जिसके फलस्वरूप उदयसिंह


मेवाड़ का सिंहासन प्राप्त करने में सफल रहा। लेकिन बाद में दोनों के


मध्य सम्बन्ध बिगड़ गये।


1541 ई. में मालदेव ने अपदस्थ मुगल सम्राट हुमायूँ को सहायता का आश्वासन देकर मारवाड़ आमंत्रित किया। हुमायूँ मालदेव से जोगीतीर्थ नामक स्थान पर मिला और मालदेव ने अपदस्थ हुमायूँ को सहायता का आश्वासन दिया। यद्यपि हुमायूँ अपनी मुर्खता के कारण मालदेव की सहायता प्राप्त नहीं कर सका। किंतु मालदेव के इस व्यवहार से शेरशाह नाराज हो गया और मालदेव के कुछ विरोधी सरदारों (मेड़ता के वीरमदेव, बीकानेर के कल्याणमल) के शेरशाह के साथ मिल जाने के कारण दोनों के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गये।


4 जनवरी, 1544 ई. में मालदेव के जैता व कूपा तथा अफगान शासक शेरशाह सूरी (फरीद) के बीच जैतारण का यद्ध/गिरी सुमेल का युद्ध (पाली) हुआ।


• मालदेव ने गिरि गाँव (पाली) में तथा शेरशाह सूरी ने सुमेल के पास बावरा गाँव (अजमेर) में अपना पड़ाव डाला।


इस युद्ध में शेरशाह सूरी की मेड़ता के वीरमदेव व बीकानेर के कल्याणमल ने सहायता की। ने


शेरशाह सूरी ने युद्ध से पूर्व कूटनीति का परिचय देते हुए जैता व कृपा के शिविर में कुछ धन रखवा दिया और मालदेव के शिविर के आगे एक जाली पत्र फिंकवा दिया कि जैता व कूपा ने शेरशाह सूरी से धन लेकर सुबह होने वाले युद्ध में भाग न लेने का निर्णय ले लिया


• मालदेव का विवाह जैसलमेर के शासक राव लूणकरण की पुत्री उम्मादे के साथ हुआ और उम्मादे अपने पति से विवाह के पहली रात ही रूठ गई थी, इस कारण इतिहास में उम्मादे रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई और जीवनपर्यन्त रूठी रही और अपने जीवन का अंतिम समय अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में बिताया।


• शेरशाह ने जब अजमेर पर आक्रमण किया तब मालदेव ने रानी उम्पादे को लाने के लिए ईश्वरदास को भेजा इस पर उम्मादे के पास आसा बारहठ नामक चारण ने रानी का स्वाभिमान जगाते हुए कहा


'माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण।

दो-दो गयंद न बंधही, हेको खम्भु ठाण।।' 


 अर्थात् मान रखना है तो पति को त्याग दें, पर पति रखना है तो मान को त्याग दें, लेकिन दो-दो गायों का एक ही स्थान पर बांधा जाना असंभव है। इन पंक्तियों को सुनकर युद्ध प्रस्थिति में भी उम्मादे मालदेव के पास जाने से इन्कार कर देती है।


रूठी रानी नाम से एक ओर प्रसिद्ध महिला अजमेर नरेश पृथ्वी राज द्वितीय चौहान की पुत्री सुहावा देवी भी है। इसने मेनाल (भीलवाड़ा) में सुहावेश्वर शिवालय का निर्माण करवाया था। मेनाल में सुहावा देवी का आवास स्थल रूठी रानी का महल कहलाता है।


7 दिसम्बर, 1562 ई. में मालदेव की मृत्यु के बाद मालदेव की पत्नी उम्मादे मालदेव की पगड़ी के साथ सती हुई।


पति की वस्तु के साथ सती होना अनुमरण प्रथा कहलाता है।


 • मालदेव के समय में साहित्य की भी पर्याप्त उन्नति हुई। उसके काल में नरसेन ने 'जिन रात्रि' कथा की रचना की। जो कि एक जैन कृति है तथा डींगल भाषा में दुदो विसराल द्वारा 'रत्नसिंह री वेली' और 'अखो भाणौत' द्वारा 'देईदास जेतावत री वेलि' की भी रचना की गई।


• श्रीअभय जैन ग्रंथ भंडार, बीकानेर में एक प्राचीन हस्तलिखित गुटका उपलब्ध है, जिसके पृष्ठ सं. 87 पर राव मालदेव के सम्बन्ध में निम्न पंक्तियाँ लिखी हुई है- "मृत्यु के समय जब मालदेव को आँगन पर लिटाया गया, तब उसने कहा- मैंने चार भूलें की है एक तो मैंने बुर्ज (किले के) में औरत को चुनवा दिया, दूसरी सातलमेर का दुर्ग ध्वस्त कर पोखरण में दुर्ग बनवाया, तीसरी मैनें अपने भाई-बन्धुओं को मारा और चौथी बादशाह शेरशाह से बिना लड़े में रणक्षेत्र से भाग गया।"

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