पिता भगवन्तदास के नेतृत्व भेजी। विजय में मानसिंह का अपूर्व योगदान रहा। अकबर ने मानसिंह से प्रसन्न होकर सिंधु नदी के सुरक्षा का जिम्मा उन्हें सौंपा। 1585 में मानसिंह को काबुल का सूबेदार नियुक्त किया। जहाँ उन्होंने रेशन विद्रोहों को समूल नष्ट किया।
बिहार सूबेदारी: दिसम्बर, 1587 बादशाह अकबर द्वारा मानसिंह बिहार की सूबेदारी दी गई। सूबेत में मानसिंह गिध गौर राजा पूरनमल हराया अन्य विद्रोहों का सफलतापूर्वक दमन कर ि शांति स्थापित की।
उड़ीसा विजय मानसिंह ने 1592 में उड़ीसा के अफगान शासक नासिर खाँ पराजित कर उड़ीसा
साम्राज्य का अंग बनाया। अकबर ने इस विजय के बाद मानसिंह को बिहार अतिरिक्त बंगाल का
बनाया।
बंगाल की दौरान राजा मानसिंह ने कूचबिहार शासक राजा लक्ष्मीनारायण बंगाल राजा केदार पराजित कर मुगल शासन के अधीन किया। राजा केदार से 1604 में मूर्ति तथा उसे आमेर के महलों प्रतिष्ठित किया। 1605 ई. तक मानसिंह बंगाल व बिहार अकबर ने अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व मानसिंह को हजारी मनसब कर उनका अपूर्व सम्मान
ही दरबार में इतना उच्च पद उस समय तक किसी अन्य हिन्दू शासक को प्राप्त नहीं था। महमदनगर अभियान :अकबर की मृत्यु के बाद सम्राट जहाँगीर मानसिंह के संबंध नहीं में मानसिंह को सम्राट जहाँगीर द्वारा दक्षिण अहमदनगर अभियान पर भेजा गया। दक्षिण में रहते हुए *6 जुलाई, 1614 को राजा मानसिंह की मृत्यु हो
जा मानसिंह न केवल अच्छे सेनानायक व शासक थे बल्कि एक प्रकांड विद्वान वास्तुशिल्प के समय रायमुरारी दास 'मानचरित्र' की रचना की थी तथा पुण्डरीक विठ्ठल रागचन्द्रोदय निर्णय आदि प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की। बिहार की सूबेदारी के समय मानसिंह रोहतासगढ़ में नवाए, बिहार मानपुर नगर तथा बंगाल अकबर नगर (राजमहल) की स्थापना की।
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