BREAKING NEWS
latest

राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव जी


• रामदेव जी का जन्म बाड़मेर के शिव तहसील के ऊंडूकासमेर गाँव में भाद्रपद शुक्ल दूज (द्वितीया) को हुआ था। इनका जन्मकाल 1352 ई. से 1405 ई. के मध्य माना जाता है।


•  रामदेवजी के पिता का नाम अजमाल जी (तंबर वंशीय) तथा माता का नाम मैणादे था। ये श्रीकृष्ण के वंशज माने जाते है। रामदेवजी 'रामसा पीर', 'रूणीचा रा धणी', 'बाबा रामदेव', आदि उपनामों से भी जाने जाते है।


● रामदेवजी के गुरू का नाम बालीनाथ था।


● रामदेवजी के भाई का नाम वीरमदे था।


● इनका विवाह अमरकोट (वर्तमान पाकिस्तान में) सोढ़ा, दलसिंह की सुपुत्री नेतलदे / निहालदे के साथ हुआ।


● रामदेवजी के मेघवाल जाति के भक्त रिखिया कहलाते हैं। ● हिन्दू रामदेवजी को कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान 'रामसा पीर' के रूप में इनको पूजते है।


• रामदेवजी ने अपनी योग साधना के बल पर तांत्रिक भैरव का वध करके


पोकरण क्षेत्र के आसपास के लोगों को उससे मुक्ति दिलवाई थी।


• रामदेवजी के नाम पर भाद्रपद द्वितीया व एकादशी को रात्रि जागरण किया जाता है, जिसे 'जम्मा' कहते है।


• बाबा रामदेवजी के चमत्कारों को पर्चा कहा जाता है। पर्चा शब्द 'परिचय' शब्द से बना है। परिचय से तात्पर्य है अपने अवतारी होने का परिचय देना।


• रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह के रूप में पगल्ये (चरण चिन्ह) बनाकर पूजे जाते है।


● रामदेवजी के भक्त इन्हें कपड़े का बना घोड़ा चढ़ाते है। • रामदेवजी के मंदिरों को 'देवरा' कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा, 'नेजा' फहराई जाती है।


• रामदेवजी ही एक मात्र ऐसे देवता है, जो एक कवि भी थे। इनकी रचना 'चौबीस वाणियां' प्रसिद्ध है।


'रामसरोवर की पाल' (रूणेचा) में समाधि ली तथा इनकी धर्मबहन 'डाली बाई' ने यहाँ पर उनकी आज्ञा से एक दिन पहले जलसमाधि ली थी। डाली बाई का मंदिर इनकी समाधि के समीप स्थित है।


● रामदेवजी की सगी बहिन का नाम सुगना बाई था। सुगना बाई का विवाह पुंगलगढ़ के पडिहार राव विजयसिंह से हुआ।


• मेघवाल जाति की कन्या डालीबाई को रामदेवजी ने धर्म-वहिन बनाया था। डालीबाई ने रामेदवजी के समाधि लेने से एक दिन पूर्व समाधि ग्रहण की थी।


• रामदेवजी ने कामड़िया पंथ चलाया था।


• कामड़िया जाति की स्त्रियाँ तेरहताली नृत्य में निपुण होती है।


• बीकानेर, जैसलमेर में रामदेवजी की फड़ व्यावले भक्तों द्वारा यांची जाती है। ● रामदेवजी ने परावर्तन नाम से एक शुद्धि आंदोलन चलाया जो मुसलमान


बने हिन्दुओं की शुद्धि कर उन्हें पुनः हिन्दू धर्म में दीक्षित करना था। ● रामदेवजी का वाहन नीला घोड़ा था।


● रामदेवजी हड़बूजी के समकालीन थे।


● रामदेवरा (रूणेचा) जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में रामदेवजी का समाधि स्थल है। भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक मेला भरता है।


● रामदेवजी का मेला साम्प्रदायिक सद्भाव का सबसे बड़ा मेला है।


● लोकदेवताओं में सबसे लम्बे गीत रामदेवजी के गीत है।


रामदेवजी के प्रिय भक्त यात्री जातरू कहलाते है।


रामदेवजी ने पश्चिम भारत में मतान्तरण व्यवस्था को रोकने हेतु प्रभावी भूमिका निभाई थी।


● भैरव राक्षस, लखी बंजारा, रवा राईका का सम्बन्ध रामदेवजी से था। • यूरोप की क्रांति से बहुत पहले रामदेवजी द्वारा हिन्दू समाज को दिया गया संदेश समता और बंधुत्व था।


• रामदेवजी के मंदिर जोधपुर के पश्चिम में मसूरियां पहाड़ी (जोधपुर),


बिराटियां (पाली), सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़) तथा छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है।


• रामदेवजी के वंशज मृतक व्यक्ति को दफनाते है।


• पाँच पीरों को पर्चा- एक बार मक्का से पाँच पीर रामदेवजी को परखने आये वे एक चादर पर बैठकर आ रहे थे। रामदेवजी जंगल में अपने नोले घोडे को घास चरा रहे थे। पीर नीचे उतरे और रामदेवजी से पूछताछ को। पीरों ने कुछ चमत्कार भी दिखाये, जैसे दातून की डालियों को जमीन में गाड़ कर पाँच पीपली के पेड़ बनाना आदि। बाबा ने यह शांति से देखा इसके बाद रामदेवजी ने उन्हें भोजन के लिए कहा पीरों ने कहा की हम तुम्हारे बर्तनों में भोजन नहीं करेंगे। हम अपने बर्तन तो मक्का में ही भूल आए हैं है। तब प्रभु ने साथ लम्बा किया और उनके वे पांचों कटोरे मक्का से लाकर पलभर में उनके सामने रख दिये। पाँचों पर प्रभु के चरणों में गिर पड़े माफी मांगने लगे तथा कहा


'मैं तो केवल रहा और थे पीस का पीर।'


● रामदेव जी मल्लिनाथ जी के समकालीन थे।

« PREV
NEXT »

कोई टिप्पणी नहीं