BREAKING NEWS
latest

पर्यावरण के जैविक कारक

 जैविक कारक


जैवमण्डल पृथ्वी की सतह और वायुमण्डल का वह भाग है, जहाँ पर जैविक इकाइयाँ मनुष्य, पशु, पेड़-पौधे और जीवाश्म रह सकते हैं। जैवमण्डल वास्तव में अपने आप में स्वतंत्र रूप में कोई क्षेत्र विशेष नहीं है, बल्कि यह जैविक वस्तुओं और उनको घेरे रखने वाली अजैविक वस्तुओं के बीच होने वाली परस्पर क्रिया-कलापों का कार्य स्थल है। वस्तुतः यह जलमण्डल, स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल में लगा हुआ वह भाग है जहाँ जीवन संभव है। जीवमण्डल में किसी क्रिया का प्रारम्भ सौर ऊर्जा से होता है जो सूर्य किरणों के रूप में पृथ्वी पर आती हैं। इस ऊर्जा की सहायता से हरे पौधे प्रकाश-संश्लेषण(Photo-synthesis) की क्रिया के अंतर्गत कार्बन डाइ ऑक्साइड और जलवाष्प में अपना स्थान ले लेती है तथा कार्बोहाइड्रेट्स पौधों द्वारा स्वयं में समाशोषित कर लिए जाते हैं जो ऊर्जा के रूप में व्यवस्थित रहते हैं। यह ऊर्जा शाकाहारी (Herbivores) पशुओं, घास तथा छोटी वनस्पति खाने से और बड़े पशुओं द्वारा छोटे मांसाहारी पशुओं (Carnivores) के खाने से क्रमवार एक भोजन श्रृंखला के रूप में चलती रहती है। मनुष्य जिसकी श्रेणी शाकाहारी और मांसाहारी (Omnivores) दोनों में आती है, अपने में ऊर्जा वनस्पति तथा पशु दोनों से लेता है। सभी वनस्पति तथा पशुओं (मानव सहित) की अधिकतर ऊर्जा उनकी अपनी जीवन क्रिया के संचालन में ही समाप्त हो जाती है और बच जाती है वह मृत पदार्थ (Dead Matter) के रूप में रह जाती है।


प्राणी जगत का निम्नतम स्तर के एक कोशीय जीवन अमीबा से लेकर उच्चतम वर्ग स्तनधारी के जीवों तक की समस्त क्रियाएँ अजैविक तत्वों के अधीन हैं। सूक्ष्म जगत जिसमें कोरी आँख से दिखाई न देने वाले अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव आते हैं उनको भी अपने अस्तित्व के लिए जैवमण्डल के वनस्पति जगत व प्राणी जगत तथा अजैविक घटकों पर निर्भर रहना पड़ता है।


अतः प्राकृतिक पर्यावरण प्रकृति की प्रत्येक इकाई के आपसी समन्वय का ही परिणाम है।

« PREV
NEXT »

कोई टिप्पणी नहीं